कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने 3 जून को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल का दौरा किया। लगभग पांच घंटे के इस संक्षिप्त प्रवास के दौरान, उन्होंने पांच विभिन्न कार्यक्रमों में शिरकत की, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण पार्टी के ‘संगठन सृजन अभियान’ की शुरुआत थी। इस दौरान, राहुल गांधी ने पार्टी नेताओं को गुटबाजी समाप्त करने, एकजुट होकर काम करने और संगठन के ढांचे को मजबूत बनाने के लिए स्पष्ट निर्देश दिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि कोई भी निर्णय ऊपर से थोपा नहीं जाएगा; इसके बजाय, सभी मिलकर फैसले लें, और यदि आवश्यक हुआ, तो बदलाव किए जाएंगे।
भाजपा की मदद करने वालों पर राहुल गांधी का निशाना
राहुल गांधी ने पार्टी के भीतर उन तत्वों की पहचान करने का भी आह्वान किया जो भाजपा की मदद कर रहे हैं। उन्होंने स्पष्ट कहा कि संगठन में सही व्यक्ति को सही स्थान दिया जाना चाहिए, और “रेस के घोड़े, बारात के घोड़े और लंगड़े घोड़े को अलग-अलग करना होगा।” उन्होंने लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनावों के लिए उम्मीदवार चयन में जिला कांग्रेस कमेटियों की भूमिका को महत्वपूर्ण बनाने, साथ ही जिम्मेदारी और जवाबदेही तय करने पर भी जोर दिया। राहुल गांधी को आखिर क्यों गुटबाजी और भाजपा के मददगारों के खिलाफ इतनी सख्त टिप्पणी करनी पड़ी, इसे समझने के लिए मध्य प्रदेश में कांग्रेस की वर्तमान जमीनी स्थिति का विश्लेषण आवश्यक है।
मध्य प्रदेश में कांग्रेस की खस्ताहाल जमीनी स्थिति
मध्य प्रदेश में कांग्रेस की जमीनी हकीकत फिलहाल काफी चुनौतीपूर्ण नजर आती है। 2018 के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल करने के बाद, कांग्रेस ने कमलनाथ के नेतृत्व में 15 साल बाद सत्ता में वापसी की थी, लेकिन विधायकों की बगावत के कारण उनकी सरकार केवल 15 महीने ही टिक पाई। 2023 के विधानसभा चुनाव में, ग्रैंड ओल्ड पार्टी ने जीत के प्रबल विश्वास के साथ मैदान में कदम रखा, लेकिन 41 प्रतिशत के करीब वोट शेयर के बावजूद, वह 230 सीटों में से केवल 66 सीटें ही जीत सकी।
हालांकि, 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 41.5 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 114 सीटें मिली थीं। इसका मतलब है कि पिछले चुनाव के मुकाबले कांग्रेस के वोट शेयर में एक प्रतिशत से भी कम की गिरावट आई, लेकिन सीटों की संख्या में 48 की कमी आ गई। इसके बाद, पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन और भी निराशाजनक रहा। 2024 के चुनाव में पार्टी अपना खाता खोलने में भी विफल रही, हालांकि उसे 32.9 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए थे।
संगठन पर गुटबाजी का गहरा प्रभाव
मध्य प्रदेश कांग्रेस की सबसे बड़ी आंतरिक समस्या लगातार गुटबाजी रही है। कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, सुरेश पचौरी और अजय सिंह राहुल जैसे कई वरिष्ठ नेताओं के बीच विभिन्न गुटों में पार्टी बंटी हुई दिखाई देती है। 2023 के विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद, पार्टी ने अपने प्रदेश अध्यक्ष और प्रभारी दोनों को बदल दिया, लेकिन इसका परिणाम यह हुआ कि 2019 के लोकसभा चुनाव में जीती अपनी एकमात्र सीट छिंदवाड़ा भी कांग्रेस 2024 के आम चुनाव में हार गई। लोकसभा चुनाव के दौरान, अजय सिंह और गोविंद सिंह जैसे कई वरिष्ठ नेताओं ने चुनाव लड़ने में असमर्थता व्यक्त की थी, जो पार्टी के भीतर की स्थिति को दर्शाता है।
यहां तक कि कमलनाथ भी अपने बेटे की उम्मीदवारी वाले छिंदवाड़ा में चुनाव प्रचार के दौरान उतनी सक्रियता नहीं दिखा पाए। लोकसभा चुनाव से पहले, मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी का एक वीडियो भी सामने आया था, जिसमें उन्होंने गुटबाजी को ‘कैंसर’ बताते हुए कहा था कि पार्टी को उबारने के लिए सबसे पहले आंतरिक स्तर पर गुटबाजी को खत्म करना ही होगा। मध्य प्रदेश में कांग्रेस की इस दयनीय स्थिति के लिए पार्टी के अन्य नेता भी अक्सर गुटबाजी को ही मुख्य कारण बताते रहे हैं। राहुल गांधी का भोपाल दौरा और उनके सीधे निर्देश इस बात का स्पष्ट संकेत हैं कि पार्टी नेतृत्व इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए अब कठोर कदम उठाने को तैयार है।