भारत ने अपनी वैश्विक व्यापारिक पहुंच का विस्तार करते हुए, ब्रिटेन के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) के बाद अब यूरोप के चार महत्वपूर्ण देशों – स्विट्जरलैंड, नॉर्वे, आइसलैंड और लिकटेंस्टीन के साथ एफटीए पर मुहर लगा दी है। इस ऐतिहासिक समझौते से इन देशों से आयात होने वाले कई सामानों पर सीमा शुल्क शून्य हो जाएगा, जिससे उनके दाम कम होने की उम्मीद है। रिपोर्टों के अनुसार, यह समझौता वस्तुओं पर लगने वाली ड्यूटी को समाप्त कर देगा, जिससे स्विस घड़ियों और चॉकलेट जैसे उत्पादों की कीमतें भारतीय उपभोक्ताओं के लिए काफी कम हो जाएंगी। यह नया एफटीए सितंबर 2025 से स्विट्जरलैंड और अन्य तीन यूरोपीय देशों के साथ लागू होने की संभावना है।
भारत में ₹100 अरब डॉलर से अधिक के निवेश की संभावना
वर्तमान में, भारत स्विस चॉकलेट पर 30 प्रतिशत आयात शुल्क लगाता है, जो इस समझौते के बाद खत्म हो जाएगा। विशेषज्ञों का मानना है कि इस एफटीए का सबसे बड़ा लाभ हाई-एंड टेक्नोलॉजी क्षेत्र को मिलेगा। अनुमान है कि इस समझौते के माध्यम से यूरोप के इन चार देशों से भारत में 100 अरब डॉलर से अधिक का सीधा विदेशी निवेश आ सकता है। विशेष रूप से, दवा कंपनियों में भी इस समझौते के बाद बड़े निवेश की संभावना है, जिससे भारत के फार्मास्युटिकल सेक्टर को नई गति मिल सकती है। यह निवेश न केवल आर्थिक विकास को बढ़ावा देगा, बल्कि रोजगार के नए अवसर भी सृजित करेगा।
क्या है मुक्त व्यापार समझौता (FTA) और इसके फायदे?
यह ध्यान देने योग्य है कि यूरोप के इन चार देशों के साथ हुए समझौते के बाद 90 प्रतिशत से अधिक सामानों पर आयात शुल्क हट जाएगा। इसका एक महत्वपूर्ण फायदा यह होगा कि भारत का बाजार उन देशों के लिए निवेश के लिए एक बड़ा और आकर्षक अवसर प्रदान करेगा। हालांकि, इन समझौतों को तैयार करते समय किसानों के हितों का विशेष ध्यान रखा गया है, और कृषि से जुड़े उत्पादों पर लगने वाले शुल्क में किसानों को नुकसान न हो, इसका पूरा ध्यान रखा गया है।
दरअसल, मुक्त व्यापार समझौता (FTA) दो या अधिक देशों के बीच होने वाले व्यापार को और अधिक सरल बनाने के लिए डिज़ाइन किया गया एक करार है। इस समझौते के तहत, आयात-निर्यात पर लगने वाले सीमा शुल्क और सब्सिडी को या तो पूरी तरह से खत्म कर दिया जाता है, या फिर उन्हें बहुत कम कर दिया जाता है। संक्षेप में, एफटीए किसी भी सरकार के व्यापार संरक्षणवाद की नीति के बिल्कुल विपरीत है। इसका उद्देश्य व्यापारिक बाधाओं को कम करके सदस्य देशों के बीच वस्तुओं और सेवाओं के मुक्त प्रवाह को बढ़ावा देना है, जिससे उपभोक्ताओं को सस्ते उत्पाद मिलें और कंपनियों को नए बाजार उपलब्ध हों।