आज 11 जून, बुधवार की रात एक खगोलीय नजारा देखने को मिलेगा, जो हर साल नहीं होता और इस बार तो यह और भी विशेष है। हम बात कर रहे हैं स्ट्रॉबेरी मून 2025 की, जो आज रात आकाश में अपनी सुनहरी चमक के साथ नजर आने वाला है। लेकिन जैसे ही लोग इस नाम को सुनते हैं, मन में पहला सवाल आता है—क्या यह चांद सच में स्ट्रॉबेरी यानी गुलाबी या लाल रंग का दिखाई देगा? जवाब है—नहीं। इसका रंग गुलाबी नहीं होता, लेकिन फिर भी इसे स्ट्रॉबेरी मून कहा जाता है।
आख़िर क्यों कहते हैं इसे स्ट्रॉबेरी मून?
स्ट्रॉबेरी मून का नाम सुनने में जितना मीठा और आकर्षक लगता है, उतना ही दिलचस्प है इसके पीछे का इतिहास। इसका संबंध चांद के रंग या उसके आकार से नहीं है, बल्कि यह नाम उन समयों की परंपरा से जुड़ा है, जब मूल अमेरिकी जनजातियां मौसम और फसल के आधार पर पूर्णिमा के चांदों को नाम देती थीं। जून महीने की पूर्णिमा को स्ट्रॉबेरी मून इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह उस समय आता है जब स्ट्रॉबेरी की फसल पककर तैयार होती है। यह समय उत्तरी गोलार्ध में वसंत ऋतु के अंत और गर्मियों की शुरुआत का सूचक होता है।
अमेरिका की कुछ पुरानी जनजातियों ने इसे “बेरीज राइपेन मून” यानी ‘जब जंगली फल पकते हैं’ नाम भी दिया था। यह नाम एक तरह से खेती और मौसम से जुड़ा हुआ संकेत था, जिससे लोगों को मौसम की स्थिति और कृषि गतिविधियों की जानकारी मिलती थी।
2025 का स्ट्रॉबेरी मून क्यों है खास?
हर साल जून की पूर्णिमा को स्ट्रॉबेरी मून कहा जाता है, लेकिन इस बार का चंद्रमा आम से अलग होगा। इस साल स्ट्रॉबेरी मून कुछ खास वजहों से बेहद विशेष माना जा रहा है। दरअसल, यह चंद्रमा इस बार सामान्य से कहीं ज्यादा नीचे क्षितिज के पास नजर आएगा। यह घटना मेजर लूनर स्टैंडस्टिल के कारण हो रही है, जो हर 18.6 वर्षों में एक बार घटित होती है।
मेजर लूनर स्टैंडस्टिल एक खगोलीय घटना है, जिसमें चांद का उदय और अस्त सामान्य से ज्यादा दक्षिण या उत्तर में होता है। जब यह घटना फुल मून के साथ संयोग से घटित होती है, तो चांद बहुत नीचे क्षितिज के पास नजर आता है और उसकी चमक भी सुनहरी और खूबसूरत दिखाई देती है। पिछली बार यह घटना 2006 में देखने को मिली थी और अगली बार अब 2043 में होगी। इसलिए इस बार का स्ट्रॉबेरी मून बहुत ही दुर्लभ और आकर्षक माना जा रहा है।
भारत में कब और कैसे देखें स्ट्रॉबेरी मून?
भारत में इस खगोलीय दृश्य को देखने के लिए आपको आज यानी 11 जून की शाम सूर्यास्त के बाद तैयार रहना होगा। जैसे ही सूरज ढलेगा, चांद दक्षिण-पूर्वी क्षितिज के पास नजर आने लगेगा। यह दृश्य खुली जगहों से और ज्यादा स्पष्ट दिखाई देगा, जहां कृत्रिम रोशनी कम हो।
यदि आप इसे और करीब से देखना चाहते हैं तो दूरबीन या टेलीस्कोप का सहारा लें। इसकी चमक कुछ सुनहरी सी होगी और यह नीचे क्षितिज के पास होने के कारण काफी बड़ा भी नजर आ सकता है। इस अद्भुत नजारे को देखने का यह मौका कई सालों बाद आया है, इसलिए इसे देखने से चूकना नहीं चाहिए।