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June 18, 2025
मध्य प्रदेश

राजा रघुवंशी और सोनम प्रकरण पर बोले धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री, विवाह संस्था पर उठाए सवाल

बागेश्वर धाम के प्रमुख और सनातन संस्कृति के प्रचारक पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने हाल ही में चल रहे चर्चित राजा रघुवंशी और सोनम के मामले पर प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने अपने बयान में भारतीय समाज में विवाह की बदलती स्थितियों और इससे युवाओं में उत्पन्न हो रही असमंजस की भावना को लेकर चिंता जताई।

अरेंज मैरिज या लव मैरिज – दोनों पर सवाल

धीरेंद्र शास्त्री ने इस प्रकरण के हवाले से कहा कि आजकल की घटनाएं देखकर यह तय कर पाना मुश्किल हो गया है कि विवाह किस प्रकार का किया जाए। पहले लगता था कि पारंपरिक रूप से माता-पिता द्वारा तय की गई शादी यानी अरेंज मैरिज ही सही विकल्प है। बाद में यह सोच बनी कि प्रेम विवाह में एक-दूसरे को समझने का अवसर मिलता है, इसलिए वह बेहतर है। लेकिन अब स्थितियां इतनी जटिल हो गई हैं कि दोनों ही रास्ते सही प्रतीत नहीं हो रहे।

कुंवारे युवाओं में बढ़ रहा है भय

उन्होंने मजाकिया अंदाज़ में कहा कि राजा और सोनम जैसे मामलों को देखकर हमारे जैसे कुंवारे युवाओं को विवाह का खयाल ही डराने लगा है। ऐसी घटनाएं यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि क्या विवाह अब भी सामाजिक स्थिरता का साधन है या फिर यह जीवन में भ्रम और तनाव का कारण बन रहा है। शास्त्री जी का यह बयान सोशल मीडिया पर काफी चर्चा में है और लोग इसे उनके बेबाक अंदाज़ की एक और मिसाल मान रहे हैं।

“भारत में नीले ड्रम वाली देवियां मिल रही हैं” – टिप्पणी से मचा हलचल

अपनी चुटीली शैली में धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने वर्तमान समय की कुछ महिलाओं के व्यवहार की तुलना करते हुए कहा कि आजकल भारत में “नीले ड्रम वाली देवियां” भी दिख रही हैं। यह टिप्पणी निश्चित रूप से प्रतीकात्मक थी, लेकिन इससे यह संकेत मिलता है कि वे समाज में सामने आ रही कुछ चरम और असामान्य घटनाओं को लेकर चिंतित हैं।

समाज को सोचने की ज़रूरत

शास्त्री जी के इस बयान से यह स्पष्ट होता है कि समाज में विवाह जैसी संस्था को लेकर युवा वर्ग में असमंजस बढ़ रहा है। विवाह, जो कभी स्थायित्व, प्रेम और सहयोग का प्रतीक माना जाता था, अब कई लोगों के लिए उलझनों और संदेहों का विषय बन गया है। ऐसे में यह समय है जब समाज को आत्ममंथन करना चाहिए कि आखिर विवाह की परिभाषा और उसकी दिशा किस ओर जा रही है।

संवाद की ज़रूरत

धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का यह बयान न केवल एक व्यक्तिगत प्रतिक्रिया है, बल्कि एक बड़े सामाजिक विमर्श की शुरुआत भी है। बदलते सामाजिक ढांचे में विवाह की भूमिका, उसमें आने वाली चुनौतियां और युवा पीढ़ी की सोच – इन सभी विषयों पर अब खुले मन से चर्चा की आवश्यकता है।

इस मुद्दे पर शास्त्री जी का संदेश यही है कि विवाह को केवल एक परंपरा मानकर चलने के बजाय उसमें पारदर्शिता, समझ और संवेदनशीलता जैसे मूल्यों को महत्व दिया जाए, ताकि यह संस्था फिर से भरोसे और स्थायित्व की प्रतीक बन सके।

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