महाराष्ट्र में स्कूलों में हिंदी भाषा को अनिवार्य रूप से पढ़ाए जाने के फैसले को लेकर चल रही राजनीतिक बहस अब थम गई है। राज्य सरकार ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए कक्षा 1 से 3 तक हिंदी की ‘अनिवार्यता’ को समाप्त कर दिया है। अब हिंदी को सामान्य रूप से तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाया जाएगा। इस संबंध में स्कूल शिक्षा विभाग ने एक नया सरकारी निर्णय (GR) जारी किया है, जो राज्य की शिक्षा नीति में एक बड़ा बदलाव है।
त्रिभाषा फॉर्मूला और हिंदी का नया स्वरूप
नए सरकारी फैसले के अनुसार, कक्षा 1 से ही ‘त्रिभाषा’ फॉर्मूला अपनाया जाएगा। इसका मतलब है कि छात्रों को तीन भाषाएं पढ़नी होंगी। मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में कक्षा 1 से 5 तक के लिए हिंदी अब एक तीसरी भाषा होगी, न कि अनिवार्य विषय। पहले देवेंद्र फडणवीस सरकार ने यह फैसला लिया था कि मराठी और इंग्लिश माध्यम के स्कूलों में तीसरी भाषा के रूप में हिंदी अनिवार्य होगी, लेकिन इस पर कई राजनीतिक दलों और शिक्षक संगठनों ने कड़ा विरोध किया था।
अन्य भाषाओं के विकल्प और छात्रों की संख्या का मानदंड
यह नई नीति छात्रों को अधिक लचीलापन प्रदान करती है। यदि कक्षा में 20 से अधिक छात्र हिंदी के बजाय कोई अन्य भारतीय भाषा सीखना चाहते हैं, तो स्कूल को उस भाषा के लिए शिक्षक उपलब्ध कराना होगा। यदि शिक्षक उपलब्ध नहीं है, तो उस भाषा विषय को ऑनलाइन माध्यम से भी पढ़ाया जा सकेगा। यह प्रावधान उन छात्रों के लिए है जो अपनी रुचि के अनुसार हिंदी के अलावा किसी अन्य भारतीय भाषा को तीसरी भाषा के रूप में चुनना चाहते हैं। हालांकि, इस विकल्प के लिए कम से कम 20 छात्रों की न्यूनतम संख्या एक शर्त के रूप में रखी गई है।
सभी माध्यमों में मराठी अनिवार्य
यह भी स्पष्ट किया गया है कि सभी माध्यम के स्कूलों में मराठी अनिवार्य भाषा होगी। इसका अर्थ है कि मराठी भाषा को राज्य में शिक्षा के हर स्तर पर प्राथमिकता दी जाएगी। मराठी और इंग्लिश माध्यम के अलावा, अन्य माध्यमों के स्कूलों में भी कक्षा 1 से 5 तक माध्यम भाषा, मराठी और अंग्रेजी – ये तीनों भाषाएं पढ़ाई जाएंगी। कक्षा 6 से 10 तक की भाषा नीति राज्य पाठ्यक्रम ढांचे के अनुसार निर्धारित की जाएगी।
फैसले का कार्यान्वयन और भविष्य की दिशा
इस नए फैसले के कार्यान्वयन की जिम्मेदारी शिक्षा आयुक्त, महाराष्ट्र शासन, पुणे को सौंपी गई है। यह कदम राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के अमल के साथ राज्य पाठ्यक्रम ढांचे को लागू करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण बदलाव है, जो छात्रों को भाषा सीखने में अधिक विकल्प और लचीलापन प्रदान करता है, साथ ही मराठी भाषा की अनिवार्यता को भी बनाए रखता है।